आठवाँ सुर और उस पर दसवीं ताल

लेखन एवं निर्देशन: सुनीता योगेश अग्रवाल

"आठवाँ सुर और उस पर दसवीं ताल" एक व्यंग्यात्मक और भावनात्मक रंगमंचीय प्रस्तुति है, जो आत्ममुग्धता, भ्रम और असली प्रतिभा के बीच की टकराहट को प्रभावशाली ढंग से मंच पर लाती है।

नाटक का केंद्र एक ऐसा लड़का है, जिसे अपनी गायकी पर बेइंतिहा विश्वास है — इतना कि वह खुद को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ गायक मानता है। लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है: उसकी आवाज बेसुरी है, और सुर से उसका दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं। फिर भी, वह अपने बनाए भ्रम के संसार में जीता है, जहाँ आलोचना उसे साजिश लगती है और तालियाँ उसका हक़।

"आठवाँ सुर" उस सुर का प्रतीक है जो संगीत के पारंपरिक दायरे से बाहर है — एक ऐसा सुर जो केवल उसके दिमाग में गूंजता है। और "दसवीं ताल" उस लय का रूपक है जो वह खुद के लिए गढ़ता है, भले ही वह दुनिया के किसी राग में न मिले।

सुनीता योगेश अग्रवाल द्वारा लिखित और निर्देशित यह नाटक न केवल हंसी और व्यंग्य का ताना-बाना है, बल्कि यह भी दिखाता है कि आत्ममुग्धता कैसे एक इंसान को अपनी असलियत से दूर कर सकती है।

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